मिली जानकारी के अनुसार, बीते वर्षों में नहर रिपेयरिंग के नाम पर विभाग द्वारा लाखों रुपये खर्च किए गए। लेकिन नहर की स्थिति आज भी जस की तस है, जिससे यह साफ होता है कि कार्य सिर्फ कागजों पर ही किया गया है। नहर की सफाई के अभाव में जलाशय से छोड़ा गया पानी खेतों तक पहुंचने के बजाय सड़कों पर बहकर बर्बाद हो रहा है।
इस विषय पर जब विभाग के मुख्य कार्यपालन अभियंता से पूछा गया, तो उन्होंने सफाई देते हुए कहा कि नहर के कुछ हिस्सों में धारी पत्थर होने के कारण पूरी तरह से सफाई नहीं हो पा रही है। हालांकि, ग्रामीणों का तर्क है कि जब करोड़ों की लागत से भंवर माल जलाशय का निर्माण किया जा सकता है, तो क्या लाखों रुपये खर्च करके पत्थरों की कटाई नहीं की जा सकती थी?
स्थानीय लोगों का कहना है कि नहर की सफाई के नाम पर सिर्फ भ्रष्टाचार हुआ है और लाखों रुपये हड़प लिए गए हैं। यह संपूर्ण मामला जांच का विषय है। लोगों की मांग है कि प्रशासन इस मामले की निष्पक्ष जांच करवाए और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करे। अब देखने वाली बात यह होगी कि क्या प्रशासन किसानों की इस समस्या को गंभीरता से लेते हुए भ्रष्टाचारियों पर कोई ठोस कदम उठाता है या यह मामला भी अन्य कई मामलों की तरह ठंडे बस्ते में चला जाएगा। फिलहाल, किसान पानी के लिए तरस रहे हैं और जल संसाधन विभाग आंखें मूंदे बैठा है।